The Echoes poetry competition to celebrate Write Out Loud's 20th anniversary is now open.  Judged by Neil Astley.

Competition closes in 54 days, 17 hours. Get details and Enter.

आज बड़े दिनों के बाद|

जाने क्यों लिखने की हुई फ़रियाद…

आज बड़े दिनों के बाद|

शायद उनके आने से लौट आया शाद,

आज बड़े दिनों के बाद|

आँखे उनकी या पैमाना, हसरते आबाद,

आज बड़े दिनों के बाद|

खुद बा खुद उठी कलम लिख बैठी उन्हें कर के याद,

आज बड़े दिनों के बाद|

गलतफहमिया दूर हो गयी, गलतियों से मिला निजाद,

आज बड़े दिनों के बाद|

तस्वीर उनकी मुख़्तलिफ़, तबस्सुम नायाब इजाद;

आज बड़े दिनों के बाद|

ना परदा ना हिजाब कोई, इक नयी पहचान की बुनियाद…

आज बड़े दिनों के बाद|

खुशनुमा चेहरे पे उनके, एक सरूर एक ऐतमाद,

आज बड़े दिनों के बाद|

वक़्त की कसौटी पे खरी उतरी हुई, जुबां से निकली दाद;

आज बड़े दिनों के बाद|

अंदाज़-ए-बयान उनके लभों का, क़ैद परिंदा मैं आज़ाद…

आज बड़े दिनों के बाद|

जुल्फों की छाँव उसके कंधो से लिपटे, क़यामत की मयाद;

आज बड़े दिनों के बाद|

इतर पहन कर जब फिरे तो यहाँ आशिक़ो का दिल-ए-बर्बाद,

आज बड़े दिनों के बाद|

मैं ने सुना जब उन्होंने फ़रमाया, ख़ुशी की बड़ी तादाद;

आज बड़े दिनों के बाद|

वो हूरो से कम नहीं कोई, देखिये ख़ूबसूरती उसकी उसीकी जायदाद…

आज बड़े दिनों के बाद|

 

मैं सिर्फ देखा करता हूँ उन्हें और लिख कर भयान उसके बाद…

वो मक़ाम मुझे नहीं हासिल,

मै जानता हूँ मै नहीं किसी के काबिल,

लेकिन देख कर लिख कर खुश होने में किसी की इजाज़त तो नहीं लेनी है,

खुश होने दो मुझे फिर; आज बड़े दिनों के बाद|

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